( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
धरा है क्या बकाने में ?
अग प्रभुसे न प्रीती है ।
जरा दृढता नही मनमें न कुछ गुण ,
शील , नीती है || टेक ||
लगी जिसको फिकर उसकी ,
उसीमें प्रेम आता है ।
बातका झूठ नाता है ,
हवा आती औ जाती है ॥ १ ॥
करे अभ्यास हरदममें ,
प्रभूके नाम गानेका ।
रँगे अपनेहि अंदरमें ,
मजा उसकोहि आती है ॥ २ ॥
जिधर देखो उधर प्यारा ,
नजरसे हट नही जावे ।
लगा चित मन उसीमेंही ,
खबर नहि दिन औ राती है ॥३ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
करो फिरके कहो किससे ।
फजुल गप्पें लडाकरके ,
शांति नहि दिलमें आती है ॥४ ॥
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